कार्यप्रणाली

कोई भी व्यक्ति (जो स्वयं लोक सेवक न हो) लोकायुक्त सचिवालय के सचिव/उप सचिव को अपनी शिकायत स्वयं उपस्थित होकर या डाक / फैक्स / ई-मेल द्वारा प्रेषित कर सकता है। शिकायत में शिकायतकर्ता का पूरा नाम, पता व व्यवसाय के साथ हर एक आरोप (Allegation) पूर्ण विवरण के साथ अंकित होना चाहिए। शिकायत में जिस लोक सेवक के खिलाफ शिकायत है, उसका नाम व पद नाम तथा जो साक्ष्य शिकायत के मुद्दों को सिद्ध करने के लिये पेश होगी, उसका ब्यौरा अंकित होना चाहिए।

 यदि व्यथित व्यक्ति अथवा शिकायतकर्ता की मृत्यु हो जाये या किसी परिस्थितिवश वह स्वयं कार्यवाही करने में असमर्थ हो तो शिकायत किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जा सकती है जो उसकी सम्पदा का प्रतिनिधित्व करता हो या इस कार्य के लिये शिकायतकर्ता द्वारा अधिकृत किया गया हो।

प्रत्येक शिकायत के साथ 10/- रू. के गैर-न्यायिक स्टाम्प पर मजिस्ट्रेट या नोटरी पब्लिक द्वारा सत्यापित शपथ-पत्र होना आवश्यक है। फैक्स/ई-मेल द्वारा शिकायत प्रेषित करने की स्थिति में शपथ-पत्र डाक द्वारा पृथक से भेजा जाना चाहिए।

 पुलिस की हिरासत में या जेल में या विक्षिप्त व्यक्तियों के आश्रय स्थान से भी लोकायुक्त को शिकायत की जा सकती है। पुलिस अधिकारी, जेल अथवा आश्रय स्थल के प्रभारी को इस शिकायत को तुरन्त ही लोकायुक्त सचिवालय को भेजना होगा।

जाँच एवं अन्वेषण करने की प्रक्रिया:

शिकायतों की जाँच पड़ताल के सम्बन्ध में लोकायुक्त को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत सिविल न्यायालय की समस्त शक्तियां प्राप्त हैं जिनके अनुसार वे शिकायत के सम्बन्ध में किसी भी ऐसे अधिकारी या अन्य व्यक्ति को जो उनकी राय में जाँच सम्बन्धी सूचना देने या सुसंगत कागजात प्रस्तुत करने में समर्थ है, बुला सकते हैं और उसके शपथ पर बयान ले सकते हैं। किसी दस्तावेज को पेश करवाना, शपथ-पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना, किसी भी न्यायालय या कार्यालय से किसी अभिलेख को या उसकी प्रतिलिपि प्राप्त करना, साक्षियों या दस्तावेजों की जाँच के लिये कमीशन जारी करना आदि सभी अधिकार उन्हें प्राप्त हैं।

 लोकायुक्त के समक्ष कोई भी कार्यवाही भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 193 के अन्तर्गत एक न्यायिक कार्यवाही है।

 यह सचिवालय ‘‘दोषी लोक सेवक को दण्ड और निर्दोष को संरक्षण‘‘ के सिद्धान्त का अनुसरण करता है, इसलिये यह संस्था लोक सेवकों के विरूद्ध प्राप्त प्रत्येक शिकायत की गहन परीक्षा कर विषय की सच्चाई की तह तक पहुँचने का प्रयास करती है। परीक्षण के दौरान यदि यह पाया जाता है कि शिकायत में लगाये गये आरोप स्पष्ट नहीं हैं तो इसके सम्बन्ध में विस्तृत तथ्यों की मांग की जाती है अन्यथा सम्बन्धित विभाग से तथ्यात्मक रिपोर्ट मंगाई जाती है। यदि मामला प्रथमदृष्टया ही प्रारम्भिक जाँच किये जाने का प्रतीत हो तो उसमें प्रारम्भिक जाँच किये जाने के आदेश प्रदान किये जाते हैं।

 तथ्यात्मक प्रतिवेदन प्राप्त होने पर परिवादी को उसका निरीक्षण करके आपत्तियां प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाता है। प्राप्त तथ्यात्मक प्रतिवेदन एवं परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई आपत्तियों का इस सचिवालय द्वारा परीक्षण किया जाता है। परीक्षणोपरान्त यदि आरोप प्रमाणित नहीं पाये जाते हैं तो शिकायत को नस्तीबद्ध कर दिया जाता है एवं यदि आरोप प्र्रमाणित पाये जाते हैं तो उनके सम्बन्ध में इस सचिवालय स्तर पर प्रारम्भिक जाँच किये जाने या सीधे ही अन्वेषण किये जाने के आदेश प्रदान किये जाते हैं।

 प्रारम्भिक जाँच के दौरान परिवादी, उसके साक्षीगण एवं सुसंगत अभिलेख के परीक्षण करने के पश्चात् यदि किसी भी लोक सेवक के विरूद्ध आरोपित अभिकथन प्रथमदृष्टया प्रमाणित नहीं पाये जाते हैं तो प्रारम्भिक जाँच को बन्द कर प्रकरण को नस्तीबद्ध कर दिया जाता है जिसकी सूचना परिवादी को भी दी जाती है।

 यदि प्रारम्भिक जाँच में आरोप प्रथमदृष्टया सही पाये जाते हैं तो सन्तुष्ट होने पर राज्य सरकार को यथोचित अनुशंसा की जाती है और आवश्यकता समझने पर राजस्थान लोकायुक्त तथा उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1973 की धारा 10 के अन्तर्गत अन्वेषण प्रारम्भ करने के आदेश प्रदान कर सम्बन्धित लोक सेवक को नोटिस व अन्वेषण के आधारों का विवरण, उसका जबाव/स्पष्टीकरण मय शपथ-पत्र एवं ऐसी दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिये भेजा जाता है जिसे कि वह अपने बचाव में प्रस्तुत करना उचित समझे तथा उसकी एक प्रति उसके सक्षम प्राधिकारी को सूचनार्थ प्रेषित की जाती है।

 लोक सेवक को अन्वेषण के दौरान अपना पक्ष रखने, व्यक्तिगत सुनवाई एवं साक्षियों से प्रतिपरीक्षण का अवसर प्रदान किया जाता है। अन्वेषण के पश्चात् यदि लगाये गये आरोप प्रमाणित नहीं पाये जाते हैं तो अन्वेषण को बन्द कर प्रकरण को नस्तीबद्ध कर दिया जाता है एवं इसकी सूचना परिवादी को भी दी जाती है।

 यदि लगाये गये आरोप अंशतः या पूर्णतः सिद्ध पाये जाते हैं तो उनके सम्बन्ध में राजस्थान लोकायुक्त तथा उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1973 की धारा 12 (1) के अन्तर्गत अन्वेषण प्रतिवेदन उसके सक्षम प्राधिकारी को भेजा जाता है जिसमें यदि लोक सेवक द्वारा कोई दाण्डिक अपराध किया गया हो तो दाण्डिक मामला संस्थित करने अन्यथा यथोचित अनुशासनात्मक कार्यवाही किये जाने की सिफारिश की जाती है।

 यदि किसी मामले में किसी भी लोक सेवक के विरूद्ध कोई आरोप प्रमाणित नहीं पाया जाये परन्तु यह प्रतीत हो कि प्रशासन की किसी भी प्रक्रिया या चलन से भ्रष्टाचार अथवा कदाचार का अवसर मिलता है तो यह सचिवालय सुझाव देता है कि ऐसी प्रक्रिया या चलन में समुचित परिवर्तन कर दिया जाये अथवा सम्बन्धित नियमों को उपयुक्त रूप से ऐसे संशोधित कर दिया जाये कि जिससे लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार या अवचार किये जाने की सम्भावना समाप्त हो जाये तथा आम लोगों को अनुचित अपहानि एवं अनावश्यक कठिनाई न हो।

 यदि शिकायत पूर्णतया मिथ्या एवं आधारहीन हो तो लोक सेवक को शिकायतकर्ता को अभियोजित करने की अनुमति भी दी जाती है।

वार्षिक प्रतिवेदन:

प्राप्त शिकायतों और उनके निराकरण के सम्बन्ध में की गई कार्यवाही से माननीय राज्यपाल को अवगत करवाने के लिये लोकायुक्त प्रतिवर्ष उन्हें एक प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हैं। आवश्यक होने पर शिकायतकर्ता को सूचित कर विशेष प्रतिवेदन भी भेजा जाता है। माननीय राज्यपाल लोकायुक्त से प्राप्त विशेष प्रतिवेदन और वार्षिक प्रतिवेदन अपने ज्ञापन सहित राज्य विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत करवाते हैं।

 इस प्रकार जन-साधारण की समस्याओं के निराकरण तथा स्वच्छ, ईमानदार एवं कुशल प्रशासन प्रदान करने के लिये मंत्रियों, सचिवों और अधिकारियों के विरूद्ध पद के दुरूपयोग तथा भ्रष्टाचार सम्बन्धी शिकायतों का पूर्णतः स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष रूप से परीक्षण करने के लिये लोकायुक्त सचिवालय एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसकी स्थापना विधायिका द्वारा कानून बनाकर की गई है। यह संस्था प्रभावी रीति से कार्य करने के कृतसंकल्पित है जिस हेतु सभी का सहयोग वांछित है।

 

  • माननीय न्‍यायमूर्ति श्री प्रताप कृष्‍ण लोहरा

    लोकायुक्त, राजस्थान