लोकायुक्त संस्थान द्वारा राज्य के मंत्रियों, सचिवों, विभागाध्यक्षों, लोकसेवकों, जिला परिषदों के प्रमुखों व उप प्रमुखों, पंचायत समितियों के प्रधानों व उप-प्रधानों, जिला परिषदों व पंचायत समितियों की स्थायी समितियों के अध्यक्षों, नगर निगमों के महापौर एवं उप महापौर, स्थानीय प्राधिकरण, नगरपरिषदों, नगरपालिकाओं व नगर विकास न्यासों के अध्यक्षों व उपाध्यक्षों, राजकीय कम्पनियों व निगमों अथवा मण्डलों के अध्यक्षों, अधिकारियों व कर्मचारियों के विरूद्ध शिकायतों की जाँच की जाती है।
शिकायत कब ?
ऊपर वर्णित लोक सेवकों द्वारा किसी को अनुचित हानि या कठिनाई पहुँचाने, अपने या अन्य किसी व्यक्ति के लिए अवैध लाभ प्राप्त करने हेतु लोक सेवक के रूप में अपनी पदीय स्थिति का दुरूपयोग करने व अपने कृत्यों का निर्वहन करने में व्यक्तिगत हित या भ्रष्ट अथवा अनुचित हेतुओं से प्रेरित होने एवं लोक सेवक की हैसियत में भ्रष्टाचार या सच्चरित्रता की कमी का दोषी होने पर इनके विरूद्ध शिकायत की जा सकती है।
पाँच वर्ष से अधिक पुराने मामले की शिकायत नहीं की जा सकती।
इनके विरूद्ध इस संस्थान में शिकायत नहीं:-
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति या न्यायाधीश अथवा संविधान के अनुच्छेद 236 के खण्ड (ख) में यथा परिभाषित न्यायिक सेवा का सदस्य,
- भारत में किसी भी न्यायालय के अधिकारी अथवा कर्मचारी,
- मुख्यमंत्री, राजस्थान
- महालेखाकार, राजस्थान,
- राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्य,
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयुक्त, प्रादेशिक आयुक्त तथा मुख्य निर्वाचन अधिकारी, राजस्थान,
- राजस्थान विधानसभा सचिवालय के अधिकारी एवं कर्मचारी,
- सरपंचों, पंचों व विधायकों के विरूद्ध भी शिकायतें की जाती हैं किन्तु उनके विरूद्ध प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता है क्योंकि वे अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं,
- सेवानिवृत्त लोक सेवक ।